Tuesday 13 January 2015

New Article on आतंक का राजनीतिकरण

आतंक का राजनीतिकरण

अभी हाल ही मंे   पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाष सिंह बादल ने देश  के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियांे को चिट्ठी लिखकर उन राज्यों मंे बंद सिक्ख आतंकियों को रिहा करने की मांग की है। याद कीजिए इससे पहले उत्तर प्रदेश  सरकार ने भी विभिन्न आतंकवादी गतिविधियिों मे लिप्त मुस्लिम आतंकियों को रिहा करने के लिए मुकदमें वापस लेने का दिषा निर्देष दिया था और संबंधित जिलाधिकारियों से आख्या मांगी थी कि ऐसे किन मामलों मंे अभियोजन वापस लिया जा सकता है।

इस पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश  सरकार को फटकारते हुए कहा था कि आप इन आतंकियों को पुरस्कृत क्यों नहीं कर देते ? सवाल इस बात की है कि राजनीतिक दल चुनाव के पहले या बाद, आखिर किस मंशा  से ऐसी मांग उठाते हैं ? अगर वास्तव में कोई निर्दोश व्यक्ति पुलिस द्वारा ऐसे मामलों में गलत तरीकें से फंसाया गया है तो निष्चित ही राज का यह दायित्व है किऐसे ही बेगुनाह व्यक्ति को छोडा जाए और उसे सजा न मिले, इसका प्रयास हर राज्य सरकार को करना चाहिए फिर चाहे वह आतंकी गतिविधियों का अपराध हो या किसी भी अन्य प्रकार का और वह निर्दोश व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय को हो, उसे बिल्कुल भी सजा नहीं मिलनी चाहिए, यह कानून की मंषा भी है और राज्य की जिम्मेदारी भी। लेकिन धार्मिक, पंथिक या जातिगत आधार पर आतंकियों एवं अपराधियों को छोड़ने या पकड़ने की मांग अथवा कोशिश  न सिर्फ असंवैधानिक और विधि विरुद्ध है बल्कि देश  की एकता, सुरक्षा और अखंडता के लिए बड़ा खतरा भी है।

आतंकी या अपराधी गतिविधियों को धर्म के चष्में से देखकर जायज या नाजायज नहीं ठहराया जा सकता है। गांधी की हत्या करने वाले गोडसे को भी इसी आधार पर महिमामंडित करना उन सभी लोगों के त्याग और बलिदान का उपहास करना है, जिन्होंने राषट्र  की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। हत्या सिर्फ हत्या है, जो एक जधन्य व दंडनीय अपराध है फिर वह चाहे किसी भी अर्थ या उद्देष्य कि लिए की गई हो। इसी तरह से सिक्ख हो, ईसाई हो या फिर मुस्लिम या हिन्दू हो, निर्दोष लोगों को कत्लेआम, मासूम बच्चों की हत्या, पत्रकारों का गला काटना या फिर लोगों को गोली या बम से उडा देना किसी भी धार्मिक या पंथिक आधार पर स्वीकार्य नहीं हो सकता है।

आज जब आतंकवाद का वैश्वीकरण हो गया है और भारत सहित अफगानिस्तान, पाकिस्तान, दक्षिण पूर्व एषिया और मध्य पूर्व से होते हुए इसकी आंच ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस को भी जलाने लगी है तो समूचे विष्व समुदाय को समुचित, सुनियोजित और रणनीतिक आधार पर एकजुट होकर आतंकवाद का मुकाबला करना होगा वरना आने वाली पीढ़ियां इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाने के लिए मजबूर होगी। भूराजनीतिक कारणों से या मजहबी आधार पर किसी भी देष में आतंकवाद का समर्थन या आतंकी गुटों को प्रश्रय, सहयोग और सहायता दरअसल हर उस कोषिया पर कुठाराधात है जो आतंकवाद का विरोध करने के लिए उठाई जाती है। याद रखिए अगर हम आज नहीं चेते तो कल बहुत देर हो चुकी होगी और यदि आज भी हमने इन समूहों और विचारधाराआंे को धार्मिक, राजनीतिक या किसी अन्य आधार पर भरण पोशण किया तो हम खुद अपने को इस आग मंे जलने से बचा नहीं पायेंगे। यह समय राजनीति करने का नहीं, सचेत होकर कार्यवाही करने का है।

-डाॅ प्रत्यूष मणि त्रिपाठी